आध्यात्मिक लब्धि (Spiritual Quotient)
Anshuman Dwivedi
The Listener
Career Consultant and Motivator
मानसिक उम्र ➗ भौतिक उम्र ❌ 100
कहते है कि जाने गए लोगों में आइंस्टीन का IQ सबसे ज्यादा था। पर वह गाँधी के समर्थक थे। गाँधी के बारे में उनका कहना था कि, आने वाली मानव जाति यह विश्वास नहीं कर पायेगी कि गाँधी जैसा हाड़-मॉस का व्यक्ति इस धरती पर वास्तव में रहा। गाँधी उनकी नज़र में इस कायनात की अविश्वसनीय निर्मिति थे।
आज के, तथाकथित, कॅरियर कंसलटेंट गाँधी की कॅरियर काउन्सलिंग तब करते जब वो मिडिल क्लास में थे या जब वह विलायत में वकालत पढ़ रहे थे तो निश्चित ही उनके भविष्य को लेकर कोई उत्साहजनक भविष्यवाणी न करते। ऐसी ही बात हम आज के कुछ बड़े राजनेताओं के बारे में भी कह सकते हैं जैसे कि मुलायम सिंह, लालू यादव या नरेंद्र मोदी।
शकुंतला देवी ने गणित में जो अपने मस्तिष्क का परिचय दिया है व अविश्वसनीय है। 13 अंकों की संख्या को 13 अंकों की संख्या से गुणा कर के 28 सेकंड में मौखिक उत्तर दिया। किन्तु उनकी उपलब्धि ऊपर बताये गए नेताओं के समक्ष कहीं नहीं ठहरती। सामान्य आदमी उनके बारे में नहीं जानता है। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्चे जनरल नॉलेज में उनका नाम रट लेते है।
व्यक्तित्व के ये फर्क दो कारणों से आते है। एक है EQ दूसरा SQ। EQ अमूमन सभी बड़े राजनेताओं, बड़े उद्योगपतियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, ख्याति लब्धि नौकरशाहों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसे अभ्यास से सुधारा भी जा सकता है। तमाम बड़े राजनेता करोड़ों रूपये खर्च कर आजकल इसपर खासी मेहनत कर रहे है और बोल-चाल और विशिष्ट सम्प्रेषण में इसका असर भी दिख रहा है। IQ किसी सफलता का प्रवेश द्वार है। लेकिन सफलता को बनाये रखने और उस सफलता को एक नई ऊंचाई देने में EQ का एक अहम् रोल है। EQ व्यक्ति-व्यक्ति और व्यक्ति और समूह के बीच संवाद को सम्प्रेषणीय (Communicable) बनाता है और वांछित फल देता है। अपने भावनात्मक संवेगों की सही समझ और उनपर विवेकपूर्ण नियंत्रण अच्छी भावनात्मक लब्धि (EQ) के कारण ही संभव है। इसी प्रकार दूसरे के भावनात्मक संवेगों की समझ और उनका मनोनुकूल प्रवाह का आधार भी EQ ही है। इसी की बदौलत सामर्थवान व्यक्तित्व अपने लाखों प्रशंसक और समर्थक जुटा लेते है, जो स्थायी नहीं भी हो सकते है। 10-15 वर्षों के बाद उन में कुछ को अपने छले जाने का प्रायश्चित भी हो सकता है। अनेक बाबाओं-नेताओं के समर्थकों के साथ ऐसा होता भी है।
EQ और SQ में है तो बड़ा गंभीर अंतर किन्तु उसको समझने के लिए दृष्टि बड़ी सूक्ष्म होनी चाहिए। अस्तित्वबोध की गहन अनुभूति SQ का आधार है। इकाई (Individuality) और समग्र (Totality) के अंतः संबंध की प्रतीति (Realization) आध्यात्मिक लब्धि (SQ) का प्रस्थान बिंदु है। इकाई और समग्र के अभेद की अनुभूति सभी भेदों को समाप्त कर देती है। जैसे कि पर्वतशिखरों की बर्फ, तालाब, नदियों और सागरों का पानी मूलतः एक है। देशकाल के कारण भिन्न दिखते है। एक ही जल के अनेक रूप। ऐसे ही हम सब एक ही समग्र के अंश है। देशकाल परिस्थिति के कारण भिन्न-भिन्न इकाई है। अर्थात, इकाई और समग्र ही एक नहीं है, अपितु इकाईयां आपस में भी एक है। आध्यात्मिक लब्धि इसी समझ की गहन अनुभूति का परिणाम है। यह अनुभूति जितनी गहन होती जाएगी, आध्यात्मिक लब्धि उतनी विराट होती जाएगी। 'स्व' और 'पर' का भेद मिट जायेगा। सारे बदलाव स्वयं के बदलाव के प्रक्षेपण मात्र होंगे। सारे नियंत्रण का मार्ग स्वयं के नियंत्रण से हो कर गुज़रेगा, सारी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, समग्र प्रेम और समस्त अहिंसा स्व में खिलेगी और सब तक विस्तीर्ण होगी। स्वयं के बाहर की सारी क्रियाएं मूलतः स्वयं से संचालित और नियंत्रित होंगी।
आध्यात्मिक लब्धि को समझने के लिए अध्यात्म को ठीक से समझना ज़रूरी है। भारत एक आध्यात्मिक देश है, ऐसा अमूमन सुना और बोला जाता है। इसका अर्थ पूजा-पाठ, व्रत-उपवास नहीं है। आध्यात्मिक होने का अर्थ किसी ख़ास तरीके के मज़हब और पंथ से जुड़ा होना भी नहीं है। अध्यात्म शब्द आत्मन के साथ अधि उपसर्ग जोड़ कर बना है। यहाँ अधि अधिकरण के अर्थ में है। अर्थात, आधार के अर्थ में। तो शाब्दिक अर्थ हुआ आत्मा से सम्बंधित। आत्मा भारत का बहु प्रचलित और बहु प्रचारित शब्द है। आत्मा-परमात्मा के बारे में सब अपने-अपने ढंग से जानते-बताते है। बुद्ध, महावीर, शंकर, रामानुज, कबीर, नानक की अपनी-अपनी व्याख्याएं है। इसपर बहस इस लेख में अप्रासंगिक है। इतना कह सकते है कि अस्तित्व मात्र जिस ऊर्जा के आधार पर खड़ा होता है उसे आत्मा कह सकते है। ऊर्जा रूप बदल सकती है मिट नहीं सकती। ऐसा ही कुछ आत्मा के बारे में कहा जा सकता है।
सब मिला कर, बात यह समझ में आयी कि , आध्यात्मिक होने का अर्थ आत्मिक होने से है। साधारण अर्थों में स्वयं को सब में और सब में स्वयं को देखना व्यक्ति को आध्यात्मिक बनाता है। यह स्वयं को जाने बिना संभव नहीं है। अतः आध्यात्मिक होने की पहली शर्त हुई स्वयं की जानकारी। 'मैं कौन हूँ?' इस सवाल को लगातार पूछते रहना आध्यात्मिक यात्रा है। और, इसके उत्तर का मिल जाना आध्यात्मिक लब्धि। स्वयं को जाने बिना कुछ भी जानना बेमतलब है, फ़र्ज़ी है।
EQ और SQ के अंतर को समझने के लिए उद्धरण देें तो बात स्पष्ट होगी। हिटलर और नेपोलियन बोनापार्ट भावनात्मक लब्धि के उदाहरण है। भारत में अशोक, अकबर और आधुनिक काल में महात्मा गाँधी आध्यात्मिक लब्धि के उदाहरण है। अशोक का धम्म, अकबर की दीन-ए-इलाही और गाँधी के रामराज की कल्पना, हिटलर और बोनापार्ट के बूते की बात नहीं है।
आध्यात्मिक लब्धि "सर्वे भवंतु सुखिनः" पर आधारित है। IQ और EQ दोनों का प्रयोग निषेधात्मक और विधेयात्मक दोनों प्रकार से हो सकता है। किन्तु SQ का प्रयोग सदा-सर्वदा सर्जनात्मक ही होगा। क्यूंकि इसके मूल में सह-अस्तित्व, परस्परावलम्बन है। आध्यात्मिक लब्धि सार्वभौमिक संगति (Cosmic Harmony) पर आधारित है। आध्यात्मिक लब्धि संपन्न व्यक्ति की लब्धियां सार्वकालिक और सार्वदेशिक होती है। उसके प्रत्येक क्रियाकलाप में धीरज और उदात्तता होती है। उसके प्रतयेक कार्य की परिणति शिवत्व है। उसके साधन और सिद्धि दोनों ही सत्य और सुन्दर है। उसका समग्र जीवन सत्यम, शिवम्, सुंदरम है। उसका कोई शत्रु नहीं होता। स्वभावतः वह किसी को हराता नहीं है। बिना किसी को हराये हुए ही वह विश्वविजेता होता है। सारा विश्व उसकी विजय का हिस्सा होता है।
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Thank you sir for writing and sharing such a good article.
ReplyDeleteBefore this article I heard about IQ & EQ but now I came to know about Spiritual Quotient.
It will also helps in writing ethics questions
Meticulously researched article, brilliantly expressed.... Worth reading.... A new dimension to spirituality and morality
ReplyDeleteकैडर के अनुकूल बात कही है
ReplyDeleteअनुकरणीय है
👌👌👌👌
ReplyDeleteसटीक विष्लेषण।
ReplyDeleteHelpful 🙏
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