आरंभिक भारतीय ऐतिहासिक परंपरा, जैसी कि वह इतिहास-पुराण में प्रतिबिंबित है, किस प्रकार प्रकट हुई थी ? इस शैली के विशिष्ट अभिलक्षण क्या है? (HISTORY MAINS, IAS 2018)



प्राचीन भारतीय इतिहास-लेखन की कला से परिचित थे। किन्तु, इतिहास-लेखन के विज्ञान से उनका परिचय कम था। इतिहास-लेखन की परंपरा प्राचीन भारत में वेद व्यास के समय में प्रारम्भ हुई और 12 वीं शताब्दी के अंत तक चलती रही।  भारतीय इतिहास-लेखन की प्राचीनतम परंपरा ऋग्वेद  में संरक्षित है। द्वापरयुग में वेद व्यास द्वारा जब मौलिक भारत इतिहास  (भारत संहिता) और पुराण संहिता (इतिहास-संहिता) का संकलन किया गया तो भारतीय इतिहास-लेखन का प्रारम्भ हुआ। पुराणकार प्रथम भारतीय थे जिन्होंने राजवंशों की वंशावली और उनके कालक्रम का संकलन किया।

इतिहास-लेखन परंपरा के 3 महत्वपूर्ण घटक आख्यान, इतिहास और पुराण है। इतिहास पुराण अपने वृहत्तर अर्थों में वास्तविक इतिहास परंपरा का बोध कराते हैं। इतिहास पुराण लेखकों ने इतिहास को उसके समग्र अर्थों में लिया है। यही कारण है कि इतिहास पुराणकारों ने तत्कालीन लोगों के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का चित्रण व्यापक फलक पर किया है।  इसकी अपेक्षा युद्ध, लड़ाई, राजनैतिक कलह और भेद पर कम लिखा है।

इतिहास-पुराण को छांदोग्य उपनिषद् में पाँचवाँ  वेद कहा गया है। पुराण अध्ययन की 14 प्रमुख धाराओं में से एक हैं। स्थापित परंपरानुसार समाज के विद्वतजन पुराण का नियमित अध्ययन करते थे।  कुछ पुराणों में इतिहास, पुराण और आख्यान को समानार्थी रूप में लिया गया है। रामायण और महाभारत में इतिहास परंपरा के लगभग सभी तत्व विद्यमान हैं। वाल्मीकि ने स्वयं रामायण को पुरातन इतिहास कहा है।  महाभारत को इतिहास, पुराण और आख्यान कहा गया है।  कौटिल्य ने इतिहास के 6 घटक बताये हैं :-
पुराण, इतिवृत्ति, आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र।

यह व्यावहारिक ज्ञान का विषय है कि साहित्यकार लोक प्रचलित कथानकों को विषय-वस्तु के रूप में चुनते हैं ।  महाभारत,रामायण और पुराणों के पात्र समाज के लोकप्रिय पात्र रहे हैं । हज़ारों वर्षों से चली आ रही कथाओं के आधार पर रामायण, महाभारत और पुराणों की सर्जना की गयी है। कुछ पात्र और कुछ कहानियाँ पौराणिक और काल्पनिक हो सकती है किन्तु इससे तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिस्थितियों को समझने में कोई बाधा उत्पन नहीं होती। वेद व्यास और वाल्मीकि अपने समय के  और उनके समय से पूर्व  चले आ रहे इतिहास-सूत्रों के सजग चितेरे हैं । इतिहास पुराण सही अर्थों में लोक रंजना के साथ इतिहास-लेखन की परंपरा का निर्वहन करते हैं ।  राजा-रानी और देवताओं के साथ तत्कालीन नागर और ग्रामीण समाज, नगरीय सभ्यताएं एवं वन्य-ग्रामीण संस्कृतियां समग्रता में इन रचनाओं में उपस्थित होती हैं।



Comments

  1. गजब मज़ा आ गया ☺️☺️☺️मुझे help चाइए

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

सबके राम

आध्यात्मिक लब्धि (Spiritual Quotient)