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Showing posts from January, 2019

एक और प्रियंका

Anshuman Dwivedi The Listener Career Consultant and Motivator कांग्रेस का पुनरुत्थान  भारत राष्ट्र और राजनीति को दीर्घायु करेगा। भारतीय राष्ट्रीय राजनीति को कांग्रेस की जरूरत है। कांग्रेस के कमज़ोर होने से क्षेत्रीय जातिगत राजनैतिक दलों का दबदबा दिल्ली में बढ़ा है। कई लोगों का मानना है इससे भारत संघ मज़बूत हुआ है। किन्तु, मेरा मानना है इससे भारत संघ कमज़ोर हुआ है। अमेरिकी संघ की तरह भारत-संघ का जन्म नहीं हुआ है।  अमेरिकी राज्यों के कारण अमेरिकी संघ है, भारत में संघ के कारण राज्य। इतिहास गवाह है कि मौर्यों से लेकर के मुग़लों तक के 2000 वर्ष  के भारतीय इतिहास में जब-जब  केंद्रीय  शक्ति कमज़ोर हुई है  क्षेत्रीय सामन्त मज़बूत हुए हैं।  भारत बिखरा है।  भारत टूटा है। भारत पर विदेशी आक्रमण हुए हैं।  भारत हारा है। मज़बूत केंद्र, स्थाई संघ के लिए आवश्यक है। वामपंथी दल, दक्षिणपंथी दल,और केंद्रोन्मुखी दल जो कि  क्रमशः कम्युनिस्ट पार्टी, भाजपा और भारतीय राष्ट्रीय  कांग्रेस है, इन तीनो का भारत के लोकतंत्र के में  वही रोल है जो कि  हिन्दू देवमंडल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का है। भारत के संघीय ढाँ

सबका आरक्षण मतलब बेमतलब आरक्षण।

Anshuman Dwivedi The Listener Career Consultant and Motivator आरक्षण का प्रावधान संविधान में, मूलतः, दस वर्ष के लिए किया गया था। अनुसूचित जाति , जनजाति के लिए और  सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े अन्य   वर्गों   के लिए। प्रारम्भ से लेकर के अबतक दस - दस साल करके आरक्षण को लगभग स्थायी कर दिया गया है। एक तात्कालिक व्यवस्था को चिरायु होने का वरदान भारत के अस्वस्थ लोकतंत्र ने दिया है। आरक्षण का उद्देश्य पिछड़ों को अगड़ों के समकक्ष लाना था ,   अगड़ों को पीछे लाना नहीं । और, पिछड़ेपन का आधार सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन था, आर्थिक नहीं। इंदिरा साहनी वाद ( 1992)  में न्यायालय ने सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े किन्तु आर्थिक रूप से अगड़ों   को आरक्षण की श्रेणी से बाहर किया, जिसे  " क्रीमीलेयर" कहा गया। न्यायालय ने स्पष्ट निर्णय दिया कि केवल आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। दूसरे शब्दों में ,  आर्थिक रूप से सम्पन्न पिछड़े तो अगड़े हो जाएगें किन्

राजनीति समाज सेवा है कैरियर नहीं।

Anshuman Dwivedi The Listener Career Consultant and Motivator अक्सर कहा जाता है राजनीति में चारित्रिक शुचिता के लिए पढ़े-लिखों का राजनीति में आना जरूरी है। जितने ज्यादा पढ़े-लिखे लोग राजनीति में आएंगे राजनैतिक वातावरण उतना ही साफ़-सुथरा होगा। कुछ लोग इस बात का मज़ाक भी उड़ाते है कि विधायक-सांसद बनने के लिए कोई न्यूनतम शैक्षिक योग्यता नहीं रखी गई। क्लर्क बनने के लिए पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी है, मंत्री बनने के लिए नहीं। मेरा स्पष्ट रूप से मानना है कि पढ़े-लिखे लोग राजनीति में आकर राजनीति  को ज्यादा होशियार और चालाकी भरा तो बना सकते है, चरित्र देंगे इसकी गारण्टी नहीं है।  राजनीति के अलावा किसी भी सरकारी क्षेत्र में न्यूनतम शैक्षिक योग्यता अनिवार्य है। डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, जज, डी.एम्, एस.पी, प्रोफेसर सभी पढ़े-लिखे है। बहुत पढ़े-लिखे है। किन्तु इनमें से किसी का भी क्षेत्र निष्कलुष नहीं है। गाँधी जी का मानना है कि पद जिम्मेदारी देता है, अधिकार नहीं। जितना बड़ा पद उतनी बड़ी जिम्मेदारी। अक्सर देखा गया है मोहल्ले में, कस्बों में, गांव में, नगरों में मेरिटोरियस लोग जब बंद कमरों में पढाई कर रहे