एक और प्रियंका

Anshuman Dwivedi
The Listener
Career Consultant and Motivator


कांग्रेस का पुनरुत्थान  भारत राष्ट्र और राजनीति को दीर्घायु करेगा। भारतीय राष्ट्रीय राजनीति को कांग्रेस की जरूरत है। कांग्रेस के कमज़ोर होने से क्षेत्रीय जातिगत राजनैतिक दलों का दबदबा दिल्ली में बढ़ा है। कई लोगों का मानना है इससे भारत संघ मज़बूत हुआ है। किन्तु, मेरा मानना है इससे भारत संघ कमज़ोर हुआ है। अमेरिकी संघ की तरह भारत-संघ का जन्म नहीं हुआ है।  अमेरिकी राज्यों के कारण अमेरिकी संघ है, भारत में संघ के कारण राज्य। इतिहास गवाह है कि मौर्यों से लेकर के मुग़लों तक के 2000 वर्ष  के भारतीय इतिहास में जब-जब  केंद्रीय  शक्ति कमज़ोर हुई है  क्षेत्रीय सामन्त मज़बूत हुए हैं।  भारत बिखरा है।  भारत टूटा है। भारत पर विदेशी आक्रमण हुए हैं।  भारत हारा है। मज़बूत केंद्र, स्थाई संघ के लिए आवश्यक है। वामपंथी दल, दक्षिणपंथी दल,और केंद्रोन्मुखी दल जो कि  क्रमशः कम्युनिस्ट पार्टी, भाजपा और भारतीय राष्ट्रीय  कांग्रेस है, इन तीनो का भारत के लोकतंत्र के में  वही रोल है जो कि  हिन्दू देवमंडल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का है। भारत के संघीय ढाँचे की मज़बूती के लिए आवश्यक है कि  क्षेत्रीय पार्टियां  राष्ट्रीय  दलों के सहायक के रूप में काम करें न कि नियंत्रक के रूप में।

पूर्वी उत्तर प्रदेश की 43 लोक सभा सीटों के लिए प्रियंका का आना अच्छी  बात है।  राष्ट्रीय  राजनीति में कांग्रेस का  पुनरुत्थान, उत्तर प्रदेश के सक्रिय  सहयोग के बिना असंभव है।  कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की ठीक से चिंता करनी चाहिए, जो कि वह करती भी है। कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय चेहरे सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली और अमेठी से ही चुनाव लड़ते है। वो जीत किसी अन्य प्रदेश से भी सकते है लेकिन उत्तर प्रदेश को प्राथमिकता देते है। प्रियंका को उत्तर प्रदेश का  दायित्व सौंप  कर उत्तर प्रदेश की अहमियत  को कांग्रेस  ने रेखांकित किया है। कांग्रेसी कार्यकर्ता लम्बे समय से प्रियंका की माँग करते रहे है। जन साधारण भी प्रियंका में इंदिरा की छवि को देखता है। कांग्रेस को  प्रियंका को लेकर ढुलमुल नीति से बचना होगा। प्रियंका कांग्रेस के तरकश का कोंग्रेसियों की नज़र में अमोघ वाण है, चल गया तो कांग्रेस अजेय है और विफल हुआ तो कांग्रेस सदा-सर्वदा के लिए राजनैतिक विकल्प के रूप में अपनी हैसियत खो देगी।  प्रियंका का इस्तेमाल कांग्रेस को पूरी त्वरा के साथ न  सिर्फ करना चाहिए बल्कि उसे दिखाना भी चाहिए। दिखने के लिए ज़रूरी है कि राजनीति वह फ्रंट फुट पर खेलें, बैक फुट पर नहीं। लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद  या किसी अन्य महानगर  से उन्हें लोक सभा का चुनाव लड़ना चाहिए। उत्तर प्रदेश की जनता का विश्वास जीतने के लिए कांग्रेस के लिए यह बहुत ज़रूरी है। यदि कांग्रेस प्रियंका से चमत्कार की उम्मीद करती है तो प्रियंका का सत्कार कांग्रेस के  नेता के रूप में होना चाहिए न कि  राहुल के सहायक के रूप में। प्रियंका गाँधी जिस भी महानगर से लड़ेंगी वो सीट तो जीतेंगी, अगल-बगल की सीटों की  जीतने की सम्भावना भारी मात्रा से बढ़ जाएगी। कांग्रेस को प्रियंका का इस्तेमाल परिपूर्ण ज्वाला के रूप में करना चाहिए सुलगती हुई गीली लकड़ी के रूप में नहीं।

 थोड़ा-थोड़ा इस्तेमाल कर के कांग्रेस, स्वयं और प्रियंका दोनों के राजनैतिक भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। राहुल को बड़ा दिखाने के लालच में प्रियंका को उनका सहयोगी दिखाना, वो चाहे 2  सीटों के लिए हो या 43 सीटों के लिए, प्रियंका और राहुल दोनों के राजनैतिक करियर के लिए अच्छा नहीं। इस से दोनों का कद बौना हो रहा है। जैसे राहुल को कांग्रेस ने इत्ता वक्त दिया है  वैसा ही अवसर अब प्रियंका को देना चाहिए। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के मतदाता को बताना ही होगा कि यदि कांग्रेस जीतती है तो प्रियंका प्रधान मंत्री होंगी और राहुल गाँधी कांग्रेस के अध्यक्ष।  प्रियंका का प्रयोग कांग्रेस अब सकुचाते हुए नहीं कर सकती और यदि करती है तो कांग्रेस उत्तर प्रदेश में बेहतर परिणाम पायेगी तो यह केवल कांग्रेस का दिवा-स्वप्न है।

उत्तर प्रदेश सहित भारत के मुसलमानोँ  की पहली पसंद कांग्रेस है। मोदी सरकार बनने के बाद मुसलमानों की पसंद  छटपटाहट में बदल गयी है। उत्तर प्रदेश के मुसलमानों   में यह छटपटाहट कुछ ज्यादा ही है। किन्तु, उत्तर प्रदेश का मुसलमान धोखे से भी 2014 के चुनाव परिणाम को दोहराने का जोखिम नहीं उठाना चाहता। वह उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हराने की सामर्थ्य  सपा में देखता  है, कांग्रेस  में  नहीं। इसलिए उत्तर प्रदेश में  उसकी पहली पसंद सपा है। जब तक कांग्रेस यह मेसेज स्पष्ट रूप से नहीं दे पाएगी कि हिन्दू समाज का एक बड़ा वोट बैंक प्रियंका की चमत्कारी व्यक्तित्व के पीछे खड़ा  है तब तक उत्तर प्रदेश का मुसलमान कांग्रेस को वोट कर, अपने वोट को विभाजित कर, बीजेपी के जीतने की सम्भावना को मज़बूत नहीं करेगा। और जब तक उत्तर प्रदेश का अधिकांश मुस्लिम वोट कांग्रेस को नहीं मिलेगा, कांग्रेस कोई चमत्कारी परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकती। प्रियंका कांग्रेस  के लिए ट्रम्प कार्ड है यदि उसे ट्रम्प कार्ड के रूप में ही इस्तेमाल किया जाये तब।

प्रियंका का उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्वागत है। वे चमत्कार करें। उनके चमत्कार का परिणाम कांग्रेस का सत्ता की  पुनर्प्राप्ति  नहीं भी हो सकता है। पर, कांग्रेस  एक मज़बूत विपक्ष तो बनेगी ही।  भारत के स्वस्थ लोक तंत्र के लिए इसकी सख्त ज़रुरत है।



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Comments

  1. Sir datya kahha apne, itna khul. Kar mai nahi bol. Sakta chuki party ka padhikari hi.... Par man me yahi mai bho budbudata hu. ..

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  2. Ye Priyanka ki sasural nahi balki mayka hai jaha use ek vishesh samman milega magaer ek nishchit samay Tak hi. Unke pati ka nam ek scandal se juda jai aap unko PM k liye kaise propose kr sakte hai.
    Nobody can be the substitute of our present PM. PM kosi party ko nahi balki India ko present krta hai 🙏🙏

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  3. यह तो सत्य है कि एक दो राज्यों में पकड़ रखने वाले क्षेत्रीय दलों के सशक्त होने से भारत वर्ष के विकास में बाधा ही होना है, इसीलिए राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक दल सशक्त एवं प्रभावी हो यह देश की स्वस्थ राजनीति के लिए अत्यावश्यक है।
    किन्तु यह बात कांग्रेस के लिए सही नहीं है कि नेहरू खानदान की प्रियंका ही कांग्रेस का उद्धार करने में सक्षम है,कांग्रेस की सामर्थ्य नेहरू गांधी परिवार से मुक्त हो कर ही लौट सकती है।

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