हिन्दी रश्मिरथ: सतत प्रवाही।


Anshuman Dwivedi
Director RAO IAS
सहज रूप से हिन्दी राष्ट्र भाषा है।  अरब खाड़ी के देश, मॉरिशस, मालदीव, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान हिन्दी जानते हैं, सुनते हैं, बोलते हैं। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका महाद्वीप के अनेक देशों में भोजपुरिया हिन्दी बोली और समझी जाती है। आई. पी. एल. में हिस्सा लेने वाले अनेक ऑस्ट्रेलियाई, अफ़्रीकी और ब्रिटिश खिलाड़ी हिन्दी समझने लगे हैं और धड़ल्ले से सामान्य शिष्टाचार हिन्दी में करना उन्हें अच्छा लगता है। "थैंक यू" की जगह पर 'शुक्रिया' , 'कहाँ से आ रहे हो?', 'कैसे हो?', 'बढ़ियाँ हूँ', जैसे सम्बोधन विदेशी खिलाड़ियों  में आम है। बंगाली, तेलुगु, मलयाली, तमिल, मराठी, पाकिस्तानी, गुजराती, अफगानी, ब्रिटिश, अमेरिकी कलाकार हिन्दी सिनेमा में काम पाने के लिए बेचैन रहते हैं।

साफ़-सुथरी हिन्दी बोलने के कारण ही मोदी राष्ट्रीय नेता बन पाए हैं। और, इसी कारण, अन्य गुजराती, मराठी नेताओं की तुलना में उनकी लोकप्रियता ज्यादा है। अमेरिका का विदेश मंत्री हिन्दी में बोलता है, "मोदी है तो मुमकिन है"। के. बी. सी. हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रमों में से एक है।  अमिताभ बच्चन ने पिछले 10 सीज़नों में फ़ोन-अ-फ्रेंड के माध्यम से पूरे भारत के लोगों से बात की है। असम, तमिल, कर्नाटक, केरला, मेघालय, हिमाचल के  छोटे-छोटे  कस्बों में रहने वाले लोगों से भी हिन्दी में बात की है।  उनमें से किसी ने भी बच्चन से यह नहीं कहा, "मुझे आपकी बात नहीं समझ में आ रही है क्योंकि आप हिन्दी में बोल रहे हैं"। पूरा देश हिन्दी जानता है- सरकार और सरकारी संस्थानों के अलावा।

यू.पी.एस.सी  का  पेपर हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में छपता है।  इस धरती का सर्वोत्कृष्ट हिन्दी विद्वान भी पूरे पर्चे को केवल हिन्दी में पढ़ कर नहीं समझ सकता। उसे अंग्रेजी वर्जन की मदद लेनी ही पड़ेगी। हिन्दी भाषी राज्यों सहित भारत सरकार के जो भी दस्तावेज हिन्दी में छपते हैं, हिन्दी भाषी उसे पढ़ कर नहीं समझ सकते। संविधान का हिन्दी अनुवाद पृथ्वी ग्रह  के लिए नहीं किया गया है। वह हिन्दी जो संसार बोलता है और सरकारी अमला जिस हिन्दी में साहित्य रचता है वे आपस में मेल नहीं खाते। यदि ऐसी ही हिन्दी भारत सरकार गैरहिन्दी भाषी राज्यों में प्रसारित करना चाहती  है  तो उसका यह प्रयास स्वतः लोकप्रिय हो रही हिन्दी के मार्ग को अवरुद्ध करेगा, प्रशस्त नहीं।

अंग्रेज़ी की जगह हिन्दी को स्थापित करने के लिए सरकारी सयास प्रयास बेईमानी है। ये तब तक बेईमानी हैं जब तक सरकारी हिन्दी पृथ्वी ग्रह पर रहने वाले लोगों के लिए सरल सुबोध नहीं हो जाती।  अंग्रेजी साहित्य का तकनीकी  और 'गुगली' अनुवाद हिन्दी को अलोकप्रिय ही बनायेगा। हिन्दी सहित भारत की सभी भाषाएँ अंग्रेजी से ज़्यादा समृद्ध हैं। कम्बन की रामायण , तुलसी की रामचरितमानस , कृतिवास की बंग्ला रामायण, कालिदास की शाकुंतलम के समकक्ष अंग्रेजी साहित्य में कुछ भी पाना असंभव है। अकेले तमिल भाषा में इतना साहित्य लिखा गया है कि गुणता और मात्रा दोनों में इसका 10 प्रतिशत भी पूरे संसार का अंग्रेजी साहित्य नहीं है।  भारत वर्ष के सारे अंग्रेजी अखबार मिलकर हिन्दी के दैनिक जागरण या मलयाली की मनोरमा के बराबर नहीं हैं। संसार का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अख़बार दैनिक जागरण है।

सरकारी प्रयास अंग्रेजी बढ़ाने का है। भारत सरकार की हर परीक्षा या तो अंग्रेजी में होती है या अंग्रेजी भाषा अनिवार्य होती है। यदि अंग्रेजी भाषा से सरकारी सहारा छीन लिया जाए और प्रतियोगी परीक्षाओं से अंग्रेजी हटा दी जाए तो अंग्रेजी भाषा का नामोनिशान मुश्किल से ढूंढें मिलेगा। ताकतवर होने की तो बात ही फ़र्ज़ी है। कुकुरमुत्तों की तरह उगे हुए अंग्रेजी कॉन्वेंट स्कूल बच्चों के लिए तरसेंगे।  मज़ाक उड़ाया जाता है कि भारत के लोग अंग्रेजी और अंग्रेज़ियत के गुलाम है। मेरा मानना है कि यह झूठ है। सरकारी अमला ऐसा प्रचार कर अंग्रेजी के पठन-पाठन के व्यापार को बढ़ावा देता है। अंग्रेजी भाषा में पढ़ना-पढ़ाना हिंदुस्तान का सबसे बड़ा उद्योग बन गया है। गरीब और मध्यम वर्ग पिस रहा है। भारत और इंडिया के बीच खाई गहरी हो रही है। शिक्षा के दलाल मौज कर रहे हैं। सरकार है कि,"रोम जल रहा था नीरो बंसी बजा रहा था "। हिन्दी पर बड़ा एहसान होगा कि सरकार इस पर कोई एहसान न करे।

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