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भारत में लोकतंत्र का संक्षिप्त सर्वेक्षण (सार)

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Anshuman Dwivedi Director RAO IAS  ऋग्वेद संसार का प्राचीनतम आधुनिक ग्रन्थ है। सभा,समिति, विदथ , गण प्राचीनतम संवैधानिक संस्थाएँ है। समिति और सभा की तुलना क्रमशः लोक सभा और राज्य सभा से की जा सकती है। समिति ताकतवर राजनैतिक संस्था थी। राजा को चुनती थी। चुने राजा को अपदस्थ कर सकती थी। अपदस्थ राजा को पुनर्स्थापित कर सकती थी। सभा बुज़ुर्ग लोगों की संस्था थी।  स्त्रियाँ भी हिस्सा लेती थी। सभा का कर्तव्य सामाजिक-साँस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करना था। युद्ध जैसे राजनैतिक मुद्दे समिति के हिस्से थे। उत्तर वैदिक काल में गण और विद्थ के नाम नहीं सुने जाते। क्रमशः सभा और समिति भी कमज़ोर हो गयीं। राजा बड़े भू-भाग पर शासन करने लगा। बढ़े हुए राजस्व के बल पर भारी-भरकम सेना को रखने में सक्षम हुआ। दूसरा बड़ा कारण है कि सभा-समिति का  स्थान मंत्रिपरिषद ने ले लिया।  कौटिल्य का पितृसत्तात्मक राजतंत्रीय विचार राजशाही और लोकतंत्रीय संस्थाओं  के बीच तनाव को रेखांकित करता है। अर्थशास्त्र में विभिन्न विभागों के प्रमुखों को तीर्थ कहा गया है। इनकी संख्या १८ थी। इनमें से चार- युवराज, मंत्री, पुरोहित, सेनानी- को

सफलता मंत्र

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Anshuman Dwivedi Director RAO IAS एक तालाब में गुरु-शिष्य नहा रहे थे। शिष्य गुरु जी की पीठ रगड़ रहा था। गुरु जी प्रसन्न दिख रहे थे। शिष्य ने गुरु जी से प्रश्न किया ,"गुरु जी सफलता का मंत्र क्या है ?" गुरु जी पलटे। शिष्य की खोपड़ी पकड़ कर पानी में डुबो दी। गुरु जी हट्टे-कट्टे थे। शिष्य छटपटाया, बहुत छटपटाया। गुरु जी ने उसे और गहरे डुबो दिया। शिष्य को समझ नहीं आ रहा था कि उससे क्या गलती हो गयी। उसने ऐसा क्या ख़राब पूछ लिया कि गुरु जी उसे मारना चाहते हैं। हार कर उसने अपने जीवन को गुरु की कृपा पर छोड़ दिया। इससे पहले कि उसकी सांस पूरी तरह से टूटती गुरु जी ने उसे छोड़ दिया। वह फड़फड़ाता हुआ पानी के बाहर आया। देर तक जल्दी-जल्दी साँस ली, फिर कुछ शाँत हुआ। गुरु जी ने पूछा, "पानी के भीतर तुम किस चीज़ के लिए तड़प रहे थे ?" शिष्य ने जवाब दिया, "सांस"। गुरु जी ने कहा कि जब लक्ष्य की चाह इतनी ही तीव्र होती है जिस तीव्रता से तुम साँसें चाह रहे थे, सफलता मिल जाती है। 

हिन्दी रश्मिरथ: सतत प्रवाही।

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Anshuman Dwivedi Director RAO IAS सहज रूप से हिन्दी राष्ट्र भाषा है।  अरब खाड़ी के देश, मॉरिशस, मालदीव, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान हिन्दी जानते हैं, सुनते हैं, बोलते हैं। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका महाद्वीप के अनेक देशों में भोजपुरिया हिन्दी बोली और समझी जाती है। आई. पी. एल. में हिस्सा लेने वाले अनेक ऑस्ट्रेलियाई, अफ़्रीकी और ब्रिटिश खिलाड़ी हिन्दी समझने लगे हैं और धड़ल्ले से सामान्य शिष्टाचार हिन्दी में करना उन्हें अच्छा लगता है। "थैंक यू" की जगह पर 'शुक्रिया' , 'कहाँ से आ रहे हो?', 'कैसे हो?', 'बढ़ियाँ हूँ', जैसे सम्बोधन विदेशी खिलाड़ियों  में आम है। बंगाली, तेलुगु, मलयाली, तमिल, मराठी, पाकिस्तानी, गुजराती, अफगानी, ब्रिटिश, अमेरिकी कलाकार हिन्दी सिनेमा में काम पाने के लिए बेचैन रहते हैं। साफ़-सुथरी हिन्दी बोलने के कारण ही मोदी राष्ट्रीय नेता बन पाए हैं। और, इसी कारण, अन्य गुजराती, मराठी नेताओं की तुलना में उनकी लोकप्रियता ज्यादा है। अमेरिका का विदेश मंत्री हिन्दी में बोलता है, "मोदी है तो मुमकिन है"। के. बी. सी. हिन्दी के सर्वा

Utility of NOTA

It is hardly possible to make the difference between voting for NOTA and not to vote at all. As far my understanding goes there is no difference. The intention behind NOTA is to give effective right to the voters not to vote any listed candidate and consequently if NOTA secures vote more than all the candidates the seat should be declared won by NOTA. As of now voting for NOTA is a futile constitutional exercise and it is as good or it is as bad as not to go to vote. In my opinion it is a dictatorial democracy, it's not participatory democracy. Every election will certainly have its result whether people participate in it or not. In a democracy where every rejection is more an acceptance, every non participation is more a participation and every non-acooperation is more a cooperation it can hardly be called participatory system. It is mockery in the name of 'of the people, by the people, for the people'. It is virtually off the people, far the people, buy the people. Ans

Nationalism.

In the current election of 2019, the term Nationalism is highly circulated in all sorts of media and other forums of public discourses. With the interest to get myself enlightened, I want to share my views with you. Eagerly looking forward to your response.  State is an instrument in the hands of a nation. One is a whole other is a part of it. State belongs to a nation, or a nation owns a state. It can be better understood by citing an example. Under the British rule, Indian state belonged to British rule, we lived in the British state and India was our nation. Any state takes care of its nation, British rule also served for England and not for India. That is why we demanded swaraj i.e. self-rule (our state). State is also defined in article 12 of the Indian Constitution; Union government, Union Parliament, State Legislatures and State governments, Local bodies and other authorities within the territory of India or under the control of Indian government. When Preamble reads, "T

Electoral Reforms

There had been several election reforms since 1952 to make election transparent. A milestone was set by CEC(Chief of Election Commission) TN Sheshan. Before him, CEC was not known to common man. Still, a lot to be done to make election establish a healthy democratic system. A few of them can be following: 1. The Model Code of Conduct(MCC) which starts with the notification of election should be applied round the year 24×7. If Model Code of Conduct is not applied round the year and making it effective only with a notification of election the very purpose of MCC is defeated. If any candidate has been attending the cast and religious gathering more than 4 years after the previous election it becomes ridiculous to ask that person to behave caste-neutral or religion-neutral after notification. 2. Post-poll alliances should be made illegal. Only pre-post alliances should be allowed. Like 'defection' post-poll alliances also cheat on the conscience of voters because pre-poll allian

जलियांवाला बाग: नरसंहार। ब्रिटिश सरकार का परिपूर्ण क्षमाप्रार्थी होने से इंकार।

13 अप्रैल 1919 बैसाखी के दिन लगभग बीस हज़ार श्रद्धालुओं की भीड़ बाग में इकठ्ठा हुई। शांत, निहत्थी भीड़।  इस घटना के पूर्व ब्रिटिश सरकार  ने रौलट अधिनियम पास किया था जिसके तहत  किसी को भी बिना वकील, बिना दलील  जेल में डाला जा सकता था। यह उन भारतियों को ब्रिटिश सरकार  का 'पुरस्कार' था जो प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेज़ों के कंधे-से-कन्धा मिला कर लड़े थे और मारे गए थे। सारा भारत स्तब्ध था।  पंजाब में सैन्य शासन  लगा दिया गया। पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर मइकेल  ओ' डॉयर की जगह ब्रिगेडियर जनरल (अस्थायी रैंक ) रेगीनाल्ड डायर को शासन का दायित्व सौंपा गया। जनरल डायर भारी सैन्यबल ले कर जलियांवाला बाग पहुंचा। बिना चेतावनी के निहत्थे  लोगों पर 1650 राउंड गोलियां चलवा दी। यह बाग़ एक छोटी सी जगह है। चरों ओर ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरी।बीच में एक कुआँ। सिर्फ एक निकास। सरकारी हिसाब में 379 लोग मारे गए।  वास्तव में मरने वाले लोगों की संख्या 1000 के आस-पास थी और घायलों की संख्या 1600 से  अधिक।  पचासों लोग गोलियों से बचने के लिए कुएं में कूद गए। सभी  डूब कर या दब कर मर गए। गोलियां इतने पास से चलाई ज

आरंभिक भारतीय ऐतिहासिक परंपरा, जैसी कि वह इतिहास-पुराण में प्रतिबिंबित है, किस प्रकार प्रकट हुई थी ? इस शैली के विशिष्ट अभिलक्षण क्या है? (HISTORY MAINS, IAS 2018)

प्राचीन भारतीय इतिहास-लेखन की कला से परिचित थे। किन्तु, इतिहास-लेखन के विज्ञान से उनका परिचय कम था। इतिहास-लेखन की परंपरा प्राचीन भारत में वेद व्यास के समय में प्रारम्भ हुई और 12 वीं शताब्दी के अंत तक चलती रही।  भारतीय इतिहास-लेखन की प्राचीनतम परंपरा ऋग्वेद  में संरक्षित है। द्वापरयुग में वेद व्यास द्वारा जब मौलिक भारत इतिहास  (भारत संहिता) और पुराण संहिता (इतिहास-संहिता) का संकलन किया गया तो भारतीय इतिहास-लेखन का प्रारम्भ हुआ। पुराणकार प्रथम भारतीय थे जिन्होंने राजवंशों की वंशावली और उनके कालक्रम का संकलन किया। इतिहास-लेखन परंपरा के 3 महत्वपूर्ण घटक आख्यान, इतिहास और पुराण है। इतिहास पुराण अपने वृहत्तर अर्थों में वास्तविक इतिहास परंपरा का बोध कराते हैं। इतिहास पुराण लेखकों ने इतिहास को उसके समग्र अर्थों में लिया है। यही कारण है कि इतिहास पुराणकारों ने तत्कालीन लोगों के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का चित्रण व्यापक फलक पर किया है।  इसकी अपेक्षा युद्ध, लड़ाई, राजनैतिक कलह और भेद पर कम लिखा है। इतिहास-पुराण को छांदोग्य उपनिषद् में पाँचवाँ  वेद कहा गया है। प

पाकिस्तान राष्ट्र नहीं एक नकारात्मक सोच है।

Anshuman Dwivedi The Listener Career Consultant and Motivator जब से पाकिस्तान बना है तब से सदा  भारत ही हारा है। पाकिस्तान बनना  भारत की हार ही थी। पाकिस्तान बनने के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तानी सेना को हरा कर चार युद्ध जीते, किन्तु भारत हारा। जब तक मूल-भूल का सुधार नहीं होगा भारत हारता ही रहेगा। पाकिस्तान कोइ प्राकृतिक देश नही है। न ही पाकिस्तान की मांग स्वाभाविक थी और न ही पाकिस्तान का निर्माण। वर्ना क्या वजह है कि पाकिस्तान की मांग पूरी होने पर भी बनने के साथ ही पाकिस्तान भारत से लड़ रहा है। वास्तव में पाकिस्तान भारत ही है जिसपर कट्टरपंथी आतंकवादियों का नाजायज़ कब्ज़ा है। हमे यह स्पष्ट रूप से स्वीकार करना होगा कि अभी भी पाकिस्तान में बहुत बड़ा भारत बसता है और भारत में भी एक छोटा सा पाकिस्तान। कुछ कट्टरपंथियों की मांग पर उस भूभाग पर पाकिस्तान का निर्माण  किया गया जहाँ की ९०% जनसँख्या पाकिस्तान की विरोधी थी। अधिकतर उन कट्टरपंथी मुसलमानों ने पाकिस्तान की मांग की थी और उसे बनवाया था जो भौगोलिक रूप से आज के पाकिस्तान के निवासी नहीं थे। वो भारत के अन्य क्षेत्रों से जा कर पाकिस्त

एक और प्रियंका

Anshuman Dwivedi The Listener Career Consultant and Motivator कांग्रेस का पुनरुत्थान  भारत राष्ट्र और राजनीति को दीर्घायु करेगा। भारतीय राष्ट्रीय राजनीति को कांग्रेस की जरूरत है। कांग्रेस के कमज़ोर होने से क्षेत्रीय जातिगत राजनैतिक दलों का दबदबा दिल्ली में बढ़ा है। कई लोगों का मानना है इससे भारत संघ मज़बूत हुआ है। किन्तु, मेरा मानना है इससे भारत संघ कमज़ोर हुआ है। अमेरिकी संघ की तरह भारत-संघ का जन्म नहीं हुआ है।  अमेरिकी राज्यों के कारण अमेरिकी संघ है, भारत में संघ के कारण राज्य। इतिहास गवाह है कि मौर्यों से लेकर के मुग़लों तक के 2000 वर्ष  के भारतीय इतिहास में जब-जब  केंद्रीय  शक्ति कमज़ोर हुई है  क्षेत्रीय सामन्त मज़बूत हुए हैं।  भारत बिखरा है।  भारत टूटा है। भारत पर विदेशी आक्रमण हुए हैं।  भारत हारा है। मज़बूत केंद्र, स्थाई संघ के लिए आवश्यक है। वामपंथी दल, दक्षिणपंथी दल,और केंद्रोन्मुखी दल जो कि  क्रमशः कम्युनिस्ट पार्टी, भाजपा और भारतीय राष्ट्रीय  कांग्रेस है, इन तीनो का भारत के लोकतंत्र के में  वही रोल है जो कि  हिन्दू देवमंडल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का है। भारत के संघीय ढाँ