हिन्दू होने का मतलब
Anshuman Dwivedi
The Listener
Career Consultant and Motivator
हिन्दू शब्द इतिहास , भूगोल और संस्कृति सापेक्ष है। सिंधु नदी से जुड़ने के कारण भूगोल से जुड़ता है, साझे पूर्वजों से जुड़ने के कारण इतिहास सापेक्ष है और ख़ास तरीके की परंपरा और संस्कार से जुड़ने के कारण यह संस्कृति सापेक्ष है। हिन्दू होने का सबसे बड़ा सुख है मानव जिज्ञासा की निर्बाध और अनंत उड़ान। हिन्दू होना समूहगतता के साथ एक निजी अनुभूति भी है। एक ख़ास प्रकार का साहस। ईश्वर के अस्तित्व को प्रश्नगत करने का साहस। हिन्दू होना एक साथ ही महाकाव्य है तो एक लघु प्रेमगीत भी। हिन्दू होना जहाँ एक ओर महाकाव्यीय सार्वभौमिकता (Epical Universality) है वहीँ एक प्रेमगीतात्मक निज-निष्ठता(Lyrical Individuality) भी। प्रेय और श्रेय का मीठा और लवणीय घोल है हिन्दू होना। सामाजिक मर्यादा (Social Modesty) और एकांतिक स्वच्छंदता (Individual Freedom) के आश्चर्यजनक संतुलन का नाम हिन्दू होना है। करोड़ों देवताओं की मूर्तियों के अम्बार , परम्पराओं और कर्मकांडों की सघनता के बीच से जब कोई मन चेतना के धरातल पर असीम को जानने की जिज्ञासा के साथ अनंत की यात्रा पर निकलता है तो वह मन हिन्दू होता है। मंदिरों ,तीर्थस्थानों की यात्रा वहां की दुर्व्यवस्था और पंडों के व्यवहार से उपजी निराशा को भूल कर फिर से तीर्थाटन, देशाटन पर निकल पड़ना हिन्दू होना है। सारी दुनिया को सरस मान कर उसे भोगने का भाव और दूसरे ही क्षण सब को नीरस मान कर दुनिया के प्रति उदासीन और निराभाव हो जाना हिन्दू होना है।
हिन्दू शब्द संसार के अन्य पंथों के सापेक्ष है। भारत में कोई भी व्यक्ति हिन्दू इसलिए है क्योंकि कोई अन्य मुसलमान है , क्रिस्तान , बौद्ध या जैन है। दूसरे अर्थों में हम यह भी कह सकते है कि आज की तारीख में हिन्दू एक निषेधात्मक (Negative) अभिव्यक्ति है न कि विधेयात्मक (Positive)। वर्ना , विधेयात्मक रूप से हिन्दू एक विश्व समुदाय है। जैसे कोई मुसलमान विधेय प्रकार से यह जानता है कि वह मुसलमान क्यों है ठीक वैसे ही किसी हिन्दू के लिए यह संभव नहीं है। मुसलमान स्वयं जानता है और दूसरे भी कि वह मुसलमान इसलिए है कि अल्लाह , क़ुरान और रसूल को मानता है। संसार के सारे मुसलमानो के लिए इन तीनो को मानना मुसलमान होने की अनिवार्य शर्त है। ठीक इसी प्रकार से किसी के हिन्दू होने के बारे में नहीं कहा जा सकता। मजहबी होने के लिए विश्वासी (Believer) और आस्तिक होना अनिवार्य शर्त है। यह बात हिन्दू होने के लिए लागू नहीं है। ईश्वरवादी(Theist) ,अनीश्वरवादी(Agnostic), निरीश्वरवादी(Athiest) तीनो ही हिन्दू हो सकते है। आस्तिक भी हिन्दू हो सकता है और नास्तिक भी। कोई ईश्वर ,कोई किताब, कोई मसीहा किसी व्यक्ति के हिन्दू होने के अनिवार्य संघटक नहीं है।
हिन्दू होना एक साथ ही निजी , पारिवारिक और सामाजिक प्रक्रिया है। हिन्दू होना ईश्वर प्रदत्त पांथिक कर्म नहीं है। यह एक निजी कर्म है। माँ ,पिता , परिवार के द्वारा सुझाया गया एक नेक मार्ग (पंथ) है। साथ ही महापुरुषों के महागमन का अनुगमन है। हिन्दू होने का अर्थ प्रकृतिस्थ होना है, स्वभाव में होना है , परम प्रेमी होना है। किसी के प्रेम की अभिव्यक्ति जब निजी और स्वार्थी न हो कर सार्वकालिक(For all times) और सार्वदेशिक(For all places) हो जाती है तो व्यक्ति हिन्दू हो जाता है।
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Hindu hone ki Isse sunder paribhasha nahi ho sakti
ReplyDeleteBrilliant composition, so serene, so soft, so melancholic.. Beautifully expressed.... A totally new dimension to the prevailing concepts...
ReplyDeleteAm touched, impressed...
Keep THIS GOOD WORK GOING..... the prevailing mindset and ideologies need to view things from this perspective and abide and live by it....
In short BRILLIANT COUNTER NARRATIVE .....
God bless you
Adorable.....
ReplyDeletegood
ReplyDeleteYe hai hamare achhe hindu hone ka mtlb....
ReplyDeleteएक विचार जो हिन्दू होने के पर्याय को विस्तार देता है। यदि वास्तव में हिन्दू होना जानना है तो अंशुमान जी के इस चिंतन को गहरे और गहरे तक मनन करना श्रेयस्कर होगा ।
ReplyDeleteमुकेश गौतम ' मुक्त' ।