मैं द्विवेदी हूं, ब्राह्मण नहीं।
Anshuman Dwivedi
The Listener
Career Consultant and Motivator
चुनावी
माहौल है। छत्तीसगढ़ में वोट पड़ चुके है। मिजोरम और मध्य प्रदेश में आज वोटिंग हो
रही है। राजस्थान में अगले महीने वोट पड़ेगें। कल रात साढ़े 10 बजे एक टीवी चैनल के
माध्यम से पता चला कि कांग्रेस और भाजपा, चैनल की ही भाषा में,"ब्राह्मण
शरणम् गच्छामि" है। सामान्य जानकारी का विषय है कि जाति
की पहचान अमूमन उपनाम से होती है। जैसे ब्राह्मणों की पहचान द्विवेदी, जोशी, मिश्रा, त्रिपाठी, वाजपेयी, शर्मा, आदि।
मेरे नाम के साथ भी द्विवेदी लगा है। इस कारण मैं भी ब्राह्मण हुआ।
कल
न्यूज सुनने से लेकर अभी तक मैं लगातार यह सोच रहा हूं कि द्विवेदी लिखने के कारण
ही मैं ब्राह्मण हूं या ब्राह्मण होने के नाते मेरे नाम के साथ द्विवेदी लिखा हुआ
है। सच यह है कि मेरे नाम के साथ द्विवेदी तब लिख गया था जब मेरे कर्म से संसार का
परिचय होना बाकी था। अब जब मैं अपने जीवन का पुनरावलोकन कर रहा हूं तो पाता हूं कि
हाइस्कूल, इंटर, बीएससी, एमए
और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के दौरान मेरे सैकड़ों सहपाठी ऐसे रहे हैं जो कर्म
की व्याख्या के आधार पर ब्राह्मण थे
किन्तु उनके नाम के साथ ब्राह्मण बोधक विशेषण नहीं लगे हैं।
अनेक
ने मुझसे ज्यादा नंबर पाए, मेडिसिन, इंजीनियरिंग, आइएस, पीसीएस
में सेलेक्शन पाया। भाषा पर नियंत्रण उनका मुझसे बेहतर था, शील
और चरित्र में भी मुझसे बहुत आगे थे। उनमें से कुछ तो ऐसे थे जो न जाति से
ब्राह्मण थे, न ही हिन्दू। उनमें से
अनेक थे सिख, बौद्ध, जैन, क्रिश्चियन, पारसी
और मुसलमान।
मैं
जो भी लिख रहा हूं निजी तौर पर लिख रहा हूं। ब्राह्मण जाति के प्रतिनिधि के रूप
में नहीं। और, न ही द्विवेदी लोगों के
प्रतिनिधि के रूप में। यहां तक कि अपने भाई, पिता, चाचा, भतीजा
या परिवार के प्रतिनिधि के रूप में भी नहीं लिख रहा हूं। निहायत ही निजी और अपना
पक्ष रख रहा हूं।
ब्राह्मण
किसे कहते हैं इसकी बहुत ज्यादा अधिकृत जानकारी मेरे पास नहीं है। विवेकानन्द की
शिकागो यात्रा के दौरान जब पत्रकारों ने सवाल किया कि आप जाति विभाजित देश से आए
हैं मानव एकता की बात कैसे करते है ? विवेकानन्द का जवाब था कि मैं ऐसे देश से आया
हूं जहां जन्म से सभी ब्राह्मण है किन्तु कर्म से कोई क्षत्रिय, वैश्य
और शूद्र हो जाता है। ठीक इसके विपरीत मनु लिखते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति जन्म से
शूद्र है और कर्म से ब्राह्मण होता है।
दोनों
ही बातों में कर्म को ब्राह्मण होने का आधार माना गया है। ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना
है। पुत्रवाची शब्द दीर्घ हो जाते हैं। जैसे] वसुदेव से वासुदेव, सुख
से सौख्य, वैसे ही ब्रह्म से
ब्राह्मण। ब्रह्म का शाब्दिक अर्थ होता है, निरन्तर विस्तार पाने
वाला। प्रतिपल, प्रतिक्षण प्राणवान, जीववान, गतिवान।
मैं स्वयं में पाता हूं पिछले बीस पच्चीस वर्षां में मैने अपने व्यक्तित्व और
चरित्र में किंचित मात्र भी वृद्धि और विकास नहीं किया है। शरीर थका है, स्मृति
कमजोर हुई है, नैतिक साहस का क्षरण हुआ
है। विस्तार नहीं संकुचन, उर्द्धगमन नहीं अधोगमन, विकास
नहीं प्रतिगमन। मेरे दिवा-स्वप्नी मन की पिछले पच्चीस वर्षों की ये प्राप्तियां
है। ऐसे निरंकुश मन वाला मैं स्वयं को ब्राह्मण होने के अर्ह्य(Qualified) नहीं
पाता।
द्विवेदी
उपनाम के कारण समाज धोखे में न रहे इसलिए मैने सफाई देना जरूरी समझा। राजनीति मुझे ब्राह्मण ही मानेगी उस पर मेरा
जोर नहीं है। और, ईमानदारी से मैं इन्सान
होने की चेष्टा कर रहा हूं।
समीक्षा वैदिक धर्म जिसे कालांतर में हिंदू नाम से जाना गया के कर्म सिद्धांत के अनुरूप तथ्यपरक एवं सत्यासत्य विवेचन है। अगर गहराई से सम्पूर्णता में इस विवेचन पर किसी भी पूर्वाग्रह से विरत विचार किया जाय तो भारत की जातीय आधारित सोच व राजनीति में पुनः शुद्धता का संचार हो सकता है।
ReplyDelete👌👌👍
ReplyDeleteसमीक्षा वैदिक धर्म जिसे कालांतर में हिंदू नाम से जाना गया के कर्म सिद्धांत के अनुरूप तथ्यपरक एवं सत्यासत्य विवेचन है। अगर गहराई से सम्पूर्णता में इस विवेचन पर किसी भी पूर्वाग्रह से विरत विचार किया जाय तो भारत की जातीय आधारित सोच व राजनीति में पुनः शुद्धता का संचार हो सकता है।
ReplyDeleteमुकेश गौतम 'मुक्त'।
Waah Bahot achaa 🙏👌👌👏👏👏
ReplyDeleteAchcha insaan hona hi bhartiy jatiyata ki pahchan hai.
ReplyDeletetr
सच्चा धार्मिक व्यक्ति वही कहलाता है जिसमें सबसे पहले मानवता हो।।
ReplyDeleteवो किसी भी समुदाय से क्यू न हो।।
आपके शब्द हर मानव व्यक्ति के जीवन चाहिए सर👌👌👌